आपकी आंखें खराब कर सकते हैं कॉन्टेक्ट लैंस, आज ही जानें ये 8 जरूरी बातें
बेशक, अपनी नजर बढ़ाने का अदृश्य तरीका है। लेकिन, अगर आप कॉन्टेक्ट लैंस पहनते हैं, तो आपको इससे जुड़ी सभी परेशानियों के बारे में पता ही होगा।

बेशक, अपनी नजर बढ़ाने का अदृश्य तरीका है। लेकिन, अगर आप कॉन्टेक्ट लैंस पहनते हैं, तो आपको इससे जुड़ी सभी परेशानियों के बारे में पता ही होगा। कॉन्टेक्ट लैंस खोना या खराब होना आपको काफी मुश्किल में डाल सकता है। और बिना सॉल्युशन के इसका इस्तेमाल करना भी बेहद खराब अनुभव देता है। कॉन्टेक्ट लैंस लगाते समय आप अनजाने में कितनी ही बार आंख में उंगली मार लेते हैं। हम जानबूझ कर तो कॉन्टेक्ट नहीं पहनते, यह सब अपनी नजर को बढ़ाने के लिए ही तो किया जाता है। आइए जानते हैं कॉन्टेक्ट लैंस से जुड़ी कुछ अनजान बातें। image courtesy : getty images

कॉन्टेक्ट लैंस पहनने वाले कई लोग अकसर दिन खत्म होते-होते आंखों में रुखापन होने की शिकायत करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि कॉन्टेक्ट लैंस वास्तव में रूखे यानी ड्राई होते हैं। आंखों के कुदरती आंसुओं के कारण लैंस पूरा दिन नमक के संपर्क में रहते हैं। जैसे-जैसे आंसु कुदरती रूप से आंखों से बाहर आता है, कुछ नमक लैंस पर लगा रह जाता है। यह नमकीन तत्व आंखों के लिए अच्छा होता है, लेकिन बहुत ज्यादा नमक नहीं। image courtesy : getty images

जी, यह बात सही है कि आंसुओं में नमक होता है, लेकिन यह बात जानकर आप हैरान हुए बिना नहीं रह पाएंगे। रोने के दौरान आपकी आंखों से जो आंसु निकलते हैं, वे वास्तव में आंख में रहने वाले आंसुओं की अपेक्षा कम नमकीन होते हैं। इसलिए जब आप रोते हैं, तो आप आंख की पुतली में नमक के संतुलन पर असर डालते हैं। रोने के बाद आपके कॉन्टेक्ट लैंस उतने नमकीन नहीं रहते, जिससे आपको अजीब लग सकता है। image courtesy : getty images

तकलीफ की शिकायतों के बाद शोधकर्ताओं ने एक दशक तक शोध किया। इसके बाद एक कंपनी ने अधिक उन्नत किस्म का लैंस बनाने का दावा किया। यह लैंस अपनी तरह का पहला लैंस है, जिसे तीन परतों से बनाया गया। सिलिकॉन हायड्रोजैल की बीच वाली परत के आगे-पीछे हायड्रोफिलिक सरफेस जैल लगाया गया है। यह परंपरागत एक परत वाले लैंस के मुकाबले अधिक घुलनशील है। इन लेयर्स के जुड़ने से पुतलियों को पहले की अपेक्षा अधिक नमी मिलती है। और इसके साथ ही वे पतले और अधिक कारगर बने रहते हैं। image courtesy : alcon a novartis company

कॉन्टेक्ट लैंस कई प्रकार के आते हैं- इसमें डेली, दो सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार आदि प्रमुख हैं। आमतौर पर लोग लंबे समय तक पहने जा सकने वाले लैंस का विकल्प चुनते हैं। लेकिन रोज उतारकर रखे जाने वाले लैंस बेहतर होते हैं। ये सबसे सुरक्षित होते हैं। ये लैंस बैक्टीरिया से भी लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं। image courtesy : getty images

लोग अकसर इन लैंस की कीमत को लेकर परेशान रहते हैं। लेकिन, अगर इसमें लैंस को साफ करने वाले सॉल्युशन की कीमत और अन्य चीजें जोड़ लें, तो यह लंबे समय तक पहने जा सकने वाले लैंस के बराबर कीमत का ही बैठते हैं। ये उन लोगों के लिए भी बेहतर होते हैं, जो नियमित रूप से लैंस पहनते हैं, क्योंकि लैंस को लंबे समय तक सॉल्युशन में नहीं रखा जा सकता।
image courtesy : getty images

भविष्य में ऐसा होता नजर आ रहा है। रात को लैंस लगाकर सोयें और सुबह तक आपकी नजर पूरी तरह ठीक हो जाएगी। लेकिन कॉर्निया को री-शेप करने की यह ऑर्थेाकेराटोलॉजी या ऑर्थो-के काफी बरसों से मौजूद है। आर्थो-के लैंस कॉर्निया को रात भर में ठीक कर देते हैं। कॉर्निया दिन भर उसी आकार में रहता है। यह प्रक्रिया बच्चों और किशोरों में ठीक रहती है, जिनकी नजर लगातार बदलती रहती है। ऐसे जो चश्मा नहीं पहनना चाहते और जिन्हें हल्का निकट दृष्टि दोष है। इसकी कीमत में अंतर हो सकता है। image courtesy : getty images

कई बार आप लैंस या चश्मे से इतना परेशान हो जाते हैं कि लेसिक ऑपरेशन करवाने का फैसला करते हैं। लेकिन, इसके कुछ नुकसान भी हैं। लेसिक करवाने के बाद उसके प्रभावों को पलटा नहीं जा सकता। लेकिन, लैंस के साथ यह सुविधा है कि अगर आपको किसी तरह की तकलीफ हो रही है, तो आप उसे उतार कर रख सकते हैं। लेकिन, कई बार लेसिक करवाने के बाद ड्राई-आई, रात को देखने में परेशानी और संक्रमण आदि की स्थायी समस्या हो सकती है। image courtesy : getty images

सबसे पहले बने कॉन्टेक्ट लैंस, हार्ड कॉन्टेक्ट, वाकई काफी अच्छे हैं। ये अपनी तरह की एकमात्र लैंस हैं, जो आंख की सतह पर मौजूद किसी विकृति, जैसे स्कार या चोट आदि को ठीक करते हैं। हार्ड लैंस आंखों को सीधे संपर्क नहीं करते, तो इसे लगाने से आंसु लैंस और आंखों के बीच फंस जाते हैं। यह तरल पदार्थ आंखों की सतह पर मौजूद कमी से पैदा होने वाले दृष्टि दोष को दूर करने में मदद करता है। image courtesy : getty images

कॉन्टेक्ट लैंस पहले पहल उन लोगों के लिए बनाये गए, जिनकी नजर बुरी तरह क्षतिग्रस्त होती थी। खराब नजर वालों के लिए इन लैंसों का उपयोग तब नहीं किया जाता था। यह 19वीं सदी के अंतिम वर्षों की बात है। लैंस कांच के बनाये जाते थे और बाद में इन्हें एनिमल जैली की मदद से आंख के उस क्षतिग्रस्त हिस्से पर लगाया जाता था, ताकि लोग दोबारा देख सकें। बाद में डॉक्टरों को अहसास हुआ कि इस तकनीक की मदद से दृष्टिदोष का भी इलाज किया जा सकता है। image courtesy : getty images

भले ही कॉन्टेक्ट लैंस की शुरुआत 19वीं सदी में हो चुकी हो, लेकिन 20वीं सदी में ही इसे अधिक लोकप्रियता मिली। जॉन विलियम हर्शेल, जो अंतरिक्ष यात्री विलियम हर्शल के बेटे थे। विलियम के नाम पर स्पेन में टेलीस्कोप भी है। पिता-पुत्र दोनों टेलीस्कोप में लगने वाले लैंस को ग्राइंड करने में विशेषज्ञ थे, और जॉन ने ही यह पता लगाया कि उसी लैंस को अगर छोटे पैमाने पर ग्राइंड कर दिया जाए, तो इससे इनसानी नजर को बढ़ाया जा सकता है। image courtesy : getty images
इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।