ये 10 आदतें कहीं चुरा न लें आपकी खुशियां
खुशी आपके भीतर होती हैं। और आपकी आदतें ही तय करती हैं कि आप खुश रहेंगे या नहीं। कुछ आदतें ऐसी होती हैं, जिनकी वजह से आप खुशी से दूर हो जाते हैं। जानते हैं कौन सी हैं वे आदतें।

आप जो करते हैं आखिर में आप वही बन जाते हैं। कई बार आपकी आदतें ही आपको परेशान करने लगती हैं। कुछ आदतें ऐसी होती हैं जो आपकी खुशियां चुरा लेती हैं।

दूसरों की कामयाबी की कहानी से प्रेरणा लेना अच्छी बात है, लेकिन उन कहानियों को सुनकर बैठ जाना और बात। आप दूसरों की कहानी सुनें और फिर अपनी कहानी न लिखें इससे तो आपको कामयाबी और खुशी मिलने से रही। अपनी क्षमताओं को पहचानें और मेहनत से जुट जाएं। यदि आप अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग करें तो बेशक कोई भी आपको सफल बनने से नहीं रोक सकता। परिस्थितियां तभी बदलती हैं, जब आपकी सोच, विचार और निर्णय पर पूरी तरह आपका अधिकार होगा। इसका अर्थ है कि आप अपने विचारों को वास्तविकता के पटल पर उतारना चाहते हैं और उसके लिए जरूरी मेहनत भी करने को तैयार हैं। इसी से आप अपने लिए कामयाबी की गाथा लिख सकते हैं। अगर आप जीवन में नयी कामयाबियां हासिल करना चाहते हैं, तो अपनी सोच स्पष्ट रखें। उन बोझों से मुक्त हों जो कामयाबी की आपकी राह में बाधा बन रहे हैं। लक्ष्य के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट रखें और रोज उसे हासिल करने का प्रयास करें। अगर आप वाकई अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं, और उसके लिए प्रयास करते हैं तो किसी भी सूरत में आप उसे हासिल करके ही रहेंगे।

सही वक्त के इंतजार में वक्त मत गंवाइये। वक्त कभी भी परफेक्ट नहीं होता। आप अपने कर्मों से समय का निर्माण करते हैं। कई लोग सितारों के अपने हक में होने की उम्मीद में कोई काम नहीं करते। उनके सारे काम उसी पर आधारित होते हैं। वे परफेक्ट पल, परफेक्ट समय और परफेक्ट साथी आदि की तलाश में रहते हैं। यानी उन्हें चाह होती है हर चीज परफेक्ट होने की। वास्तव में ये परिस्थितियां केवल मतिभ्रम ही होती हैं।
तरक्की की आपकी राह अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए अपनी क्षमताओं के उपयोग करने से ही निकलती है। आप जब बुरे हालात को अपनी मेहनत से सही करने में जुट जाते हैं, वही क्षण आपके लिए परफेक्ट होता है। आप परफेक्ट लम्हे को देखकर आप कामयाब नहीं हो सकते, कामयाबी के लिए आपके पास जीवन की खामियों को सही प्रकार से देखने की नजर होनी चाहिये।

बिना प्रेम के कार्य करना दासता है। संभव है कि आप अपने काम के प्रति बेहद जुनूनी न हों, लेकिन कम से कम उसमें आपकी दिलचस्पी तो होनी ही चाहिये। जब आप बिना किसी वजह के केवल अपने खर्चे पूरे करने के लिए काम करते हैं, तो आपकी तरक्की की राह बंद हो जाती है। और आखिर में आपको अहसास होता है कि काश कि आपने अपना जीवन किसी और तरीके से बिताया होता।
जरा सोचें... यह आपका जीवन है। और आपका काम जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा होता है। यह सिर्फ पैसे की बात नहीं है। यह आपके सवाल है। आपके जीवन का सवाल है। वही काम करें जो आपको पसंद हो और जिससे आपकी पहचान जुड़ सके। अगर किसी काम में आपकी रुचि होगी, तो आप उसमें बेहतर मन लगाकर काम कर सकेंगे और जब आप किसी काम में मन लगाकर काम करेंगे तो परिणाम भी अपेक्षाकृत बेहतर ही आते हैं।

मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, 'अंधेरे को अंधेरे से नहीं मिटाया जा सकता, इसके लिए रोशनी की जरूरत होती है। नफरत को नफरत से नहीं प्यार से ही खत्म किया जा सकता।'' सच तो यह है कि जब आप नफरत की भावनाओं से ग्रस्त हो जाते हैं, तो अंत में वे हम पर ही हावी हो जाती हैं। ये भावनायें हमें नियंत्रित करने लगती हैं। हम घृणा के मूल कारण को भूल जाते हैं, लेकिन किससे नफरत करनी है हमें यह याद रह जाता है। हम केवल नफरत करने के मकसद से नफरत करते हैं। और अंत में धीरे-धीरे हम स्वयं से ही घृणा करने लगते हैं।
घृणा स्थायी भाव बन जाता है। हम जिससे भी नफरत करते हैं वह सब हमारे दिलो-दिमाग में गहरा बैठ जाता है। आपको चाहिये कि नफरत के इस पेंच से खुद को आजाद करें। आगे बढ़ें और अतीत की इन यादों से छुटकारा पायें।

एक दिन अचानक आपको अहसास होता है कि अभी तक जिन चिंताओं और डर के कारण आप आगे नहीं बढ़ पा रहे थे, वे वास्तव में आपकी सोच से कम बड़े थे। जरा सोचिये अपनी नकारात्मकता और डर के कारण आपने जीवन में खुशी के कितने लम्हे यूं ही जाया कर दिये। हालांकि बीते लम्हों को तो आप सुधार नहीं सकते, लेकिन भविष्य को तो बेहतर बना ही सकते हैं।
आपको अहसास होगा कि क्यों कुछ चीजों को कई बार यूं ही जाने देना चाहिये। क्यों कुछ हालात पर प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिये। अपने जीवन के इन लम्हों का आनंद अभी उठाना कितना आसान है। परिस्थितियों के गुलाम न बनें और हर लम्हे को खुलकर जियें। आपको बस अपनी सोच बदलने की जरूरत है। रोष और ईर्ष्या की भावनाओं को स्वयं पर हावी न होने दें। दूसरों को नियंत्रित करने की अपनी भावना से भी आजाद हों। इसके बाद आप देखेंगे कि जीवन कितना सुखद है।

कभी-कभी कोई बुरा दिन भी होता है। इस दिन जब चीजें आपकी इच्छानुसार नहीं होतीं। इस तथ्य को स्वीकार करें और इसे स्वयं पर हावी न होनें दें। इन परिस्थितियों को स्वयं और अपने लक्ष्य पर हावी न होने दें। परेशान करने वाली चीजों को ठीक करने का प्रयास करें। लेकिन, उन्हें अपने जीवन पर हावी न होने दें।
हर नया दिन आपके लिए नयी सीख और जिम्मेदारियां लेकर आता है। हर रोज आपको हमेशा अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिये। कई बार हालात बहुत बदतर होते हैं, लेकिन आपके पास हमेशा विकल्प होते हैं। आपको अपना रास्ता खुद ही बनाना होता है।

भाव दो प्रकार के होते हैं- क्षणभंगुर और स्थायी। भौतिक वस्तुओं से हमें क्षणभंगुर संतोष की प्राप्ति होती है। वहीं स्थायी भाव का सुख और संतोष मानसिक विकास से मिलता है। पहली नजर में इन दोनों के बीच अंतर करना भी संभव नहीं होता। लेकिन, समय के साथ-साथ आप आसानी से दोनो भावों को पृथक कर पहचान सकते हैं।
स्थायी संतोष जीवन के उतार-चढ़ाव के साथ भी कायम रहता है। ऐसा इसलिए होता है कि जीवन के इन उतार-चढ़ाव में भी आपके मन में विश्वास और शांति का भाव रहता है। वहीं दूसरी ओर क्षणभंगुर संतोष से आपका मन लगातार विचलित होता रहता है। आपकी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी आपको खुश नहीं रख पातीं, क्योंकि आपके मन में संतोष और स्थायित्व का अभाव होता है।

अगर आप बदलाव की इच्छा रखते हैं, तो छोटे कामों से शुरुआत करें। अचानक सब कुछ बदल देना करीब-करीब असंभव है। और बड़े बदलाव की यह प्रक्रिया भी आमतौर पर काफी तनाव भरी हो सकती है। इसलिए छोटी शुरुआत करना बेहतर होता है। आपको केवल एक व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत होती है और वह व्यक्ति आप स्वयं भी हो सकते हैं या फिर आपका कोई बेहद करीबी व्यक्ति।
खुशियों और फूलों का छोटा-छोटा गुच्छा बनायें। और फिर इसे कुदरती रूप से फैलने दें। अगर आप किसी व्यक्ति का मूड और मन बदलना चाहते हैं, तो कई बार आपको उसके आसपास के वातावरण को बदलना पड़ता है। उदाहरण के लिए अगर आप किसी एक व्यक्ति को हंसाते हैं, तो उसे देखकर बाकी लोग भी हंसने और मुस्कुराने लगते हैं।

जो लोग आपकी परवाह नहीं करते उनका दामन पकड़े रहना सही नहीं। अगर कोई व्यक्ति लगातार आपको तंग करता रहता है, तो इसका अर्थ यही है कि उसे आपकी परवाह नहीं है। हालांकि ऐसा करना कड़वी गोली हो सकता है, लेकिन ऐसा किया जाना जरूरी भी है। उन्हें अधिक प्रभावित करने का प्रयास न करें। यदि आप अपनी नजरों में ईमानदार हैं, तो आपको कुछ और साबित करने की जरूरत नहीं है। .

केवल किसी के शारीरिक रूप पर मुग्ध होना सही नहीं। यह तो कुछ ऐसा ही है जैसे आप पसंदीदा भोजन का चुनाव स्वाद के बजाय रंग के आधार पर करें। ऐसा करने का तो कोई औचित्य नहीं।
हर किसी की पसंद अलग होती है। इसका अर्थ यह नहीं कि फलां चीज बेहतर या है फलां खराब। यह पसंद का मामला है। बेहतर है कि आप लोगों को उनके स्वभाव के आधार पर चुनें न कि महज उनके रूप पर आधार पर।
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