
आंखें ही तो हैं, जो हमें कुदरत की खूबसूरती का नजारा कराती हैं। आंखें हमें कुदरत का सबसे खूबसूरत और कीमती तोहफा मानी जाती हैं। लेकिन, आंखों के बारे में हम कितना जानते हैं। कई ऐसी बातें हैं जिन्हें हम सच मानते हैं, लेकिन वे केवल मिथ हैं
आंखों और चश्मे को लेकर कई प्रकार के मिथ प्रचलित हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही पांच मिथ के बारे में, जो प्रचलित तो हैं, लेकिन वास्तविकता से उनका कोई संबंध नहीं।
ये आंखें ही तो हैं, जो हमें कुदरत की खूबसूरती का नजारा कराती हैं। आंखें हमें कुदरत का सबसे खूबसूरत और कीमती तोहफा मानी जाती हैं। लेकिन, आंखों के बारे में हम कितना जानते हैं। आंखों और उसकी सेहत को लेकर हमें काफी भ्रम होते हैं। आखिर क्या हैं वे प्रचलित भ्रम और क्या हैं वास्तविकता।
भ्रम : अगर आपकी नजर धुंधली नहीं है, तो आपको चश्मा अथवा लैंस पहनने की जरूरत नहीं है
यह सच है कि अधिकतर लोग जो सुझाये गए लैंस पहनते हैं उन्हें धुंधला दिखाई देता है। यह डॉक्टर के सुझाये गए ग्लास के कारण नहीं होता है। विजन थेरेपी में लैंस का इस्तेमाल इसिलए किया जाता है ताकि आंखों की मांसपेशियों को साथ काम करना सिखाया जा सके। टेनिस और गोल्फ आदि के खिलाडि़यों के लिए खास लैंस तैयार किये जाते हैं, ताकि उनके प्रदर्शन में सुधार आ सके। इसके साथ ही कंप्यूटर पर लंबे समय तक बैठने से आंखों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए भी लैंस पहने जाते हैं। इसके साथ ही उनका इस्तेमाल चमक को कम करने के लिए भी किया जाता है, ताकि आप स्पष्ट तस्वीर देख सकें। चश्मा उन लोगों के लिए भी फायदेमंद होता है जिन्हें रक्तांधता (लाल और हरा रंग देखने में परेशानी) होती है। कॉन्टेक्ट लैंस उस समय भी पहनने की सलाह दी जाती है कि जब किसी दुर्घटनावश किसी व्यक्ति की आंख में बदलाव आ गया हो। ऐसे कई कारण हैं जिनके चलते आपको लैंस अथवा चश्मा पहनने की सलाह दी जा सकती है, और इनका आंखों के धुंधलेपन से कोई लेना देना नहीं होता।
भ्रम : कम रोशनी में पढ़ने से आपकी आंखें खराब हो जाती हैं।
कम रोशनी में पढ़ने से आपकी आंखें कमजोर नहीं होतीं। हां ऐसा हो सकता है कि आप कुछ ही देर में निराश अथवा दुखी हो सकते हैं क्योंकि आपको साफ नजर नहीं आ रहा। आंखों की बाहरी मांसपेशियां आंखों को अंदर करती हैं इसे कंन्वर्ज (converge) कहा जाता है। आपके प्यूपिल्स छोटे हो जाते हैं, इसे कॉन्सट्रिक्ट (constrict) कहा जाता है। और अंदरूनी मांसपेशी जो ध्यान केंद्रित करती है, वह लैंस को फोकस बदलने के लिए निर्देश भेजती है, यह क्रिया एकोमोडेट (accommodate) कहलाती है। पढ़ते समय आप तीन क्रियायें एक साथ होती हैं। जब हम किसी चीज को अपने करीब लेकर आते हैं, तो ये तीनो क्रियायें एक साथ होती हैं। जब हम कम रोशनी में पढ़ाई करते हैं तो प्यूपिल्स बड़े हो जाते हैं, जिससे आंखों में अधिक रोशनी पहुंचने लगती है। आंखों में अधिक रोशनी जाने से चमक अधिक हो जाती है साथ ही ध्यान केंद्रित करने में भी परेशानी होती है। एकोमोडेटिव प्रक्रिया क्योंकि सही प्रकार से काम नहीं करती, इसलिए आपको धुंधला नजर आता है, इससे आंखों के कमजोर होने का कोई संबंध नहीं है।
भ्रम : अधिक गाजर खाने से आपकी नजर तेज होती है
गाजर में बेटा-करोटेन होता है। यह एक जरूरी एंटी-ऑक्सीडेंट है जो आंखों को नुकसान पहुंचाने वाले फ्री रेडिकल्स से लड़ने में मददगार होता है। लेकिन, आंखों के लिए गाजर से भी ज्यादा जरूरी पोषक तत्व पालक में मौजूद होते हैं। पालक में ल्यूटेन और जिएक्सथिन, जैसे दो जरूरी रंगद्रव्य होते हैं। ये दोनों तत्व आंखों के रेटिना में पाए जाते हैं। कई शोध भी यह बात साबित कर चुके हैं कि ल्यूटेन और जिएक्सथिन आंखों को उम्र संबंधी रोग, जैसे अध:पतन और मोतिया आदि के असर को कम करता है। पालक में विटामिन ए, विटामिन सी, जिंक और जरूरी ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। ये सब उम्र के आंखों पर पड़ने वाले असर को कम करने में मददगार होते हैं। अब इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अपने आहार में से गाजर को बाहर कर दें। हमारे कहने का अर्थ तो यह है कि आप पालक को भी अपने आहार का जरूरी हिस्सा बनायें।
भ्रम : चश्मा पहनने की आदत आपकी आंखों को कमजोर बना सकती है
अपनी आंखों को आराम देने के लिा कान्टैक्ट लैंस निकाल दें और अपनी आंखों को आराम दें। अगर आपको दूर की चीज़े पढ़ने के लिए चश्मे की ज़रूरत है तो अपनी आंखों पर बिना किसी प्रकार का दबाव दिये हमेशा चश्में का इस्तेमाल करें। चश्मे का इस्तेमाल ना करने से आपकी आंखों पर अतिरिक्त दबाव ही पड़ेगा। चश्मे का इस्तेमाल करने से आपकी आंखों पर किसी भी प्रकार की दबाव भी नहीं पड़ता है। जो लोग लगातार चश्मा पहनते हैं, वे धीरे-धीरे उसके आदि हो जाते हैं और फिर चश्मे के बिना उन्हें साफ नजर नहीं आता। जबकि वास्तविकता यह है कि आपका मस्तिष्क स्पष्ट रूप से देखने का आदी हो जाता है। जन्म से तो किसी को भी अपनी कमजोर नजर का आभास नहीं होता। हम केवल उतना ही जानते हैं, जो हम देख पाते हैं और हमारी नजर में वही 'सामान्य'' होता है। लेकिन, जब हम चश्मा पहनते हैं तब हमें वही तस्वीरें साफ नजर आने लगती हैं, जो कभी धुंधली हुआ करती थीं। तभी हमें वास्तविकता का आभास होता है। जब हम चश्मा उतार देते हैं, तब मस्तिष्क को एक धुंधली तस्वीर दिखायी देने लगती है। और अब क्योंकि मस्तिष्क को यह पता है कि वास्तविक तस्वीर क्या है तो यह दोबारा चश्मा पहनने की मांग करने लगता है।
भ्रम :पूरे दिन कंप्यूटर के सामने बैठना आंखों के लिए हानिकारक है।
हालांकि कंप्यूटर के इस्तेमाल से आंखों पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं पड़ता लेकिन पूरा दिन कंप्यूटर के सामने बैठने से आपकी आंखों पर तनाव पड़ सकता है और आंखें थक सकती हैं। प्रकाश को इस प्रकार से संतुलित करें जिससे कि आपकी आंखों पर अतिरिक्त दबाव ना पड़े। कंप्यूटर का इस्तेमाल करने का एक और अच्छा तरीका है कि आप हर एक घण्टे पर अपनी आंखों को थोड़ा आराम दें । बहुत देर तक लगातार कंप्यूटर पर काम करने वाले अपनी पलकों को झपकाना भूल जाते हैं और इस कारण से आंखें शुष्क पड़ जाती हैं। अपनी पलकों को लगातार झपकाने की कोशिश करें।
हो सकता है कि आपको भी आंखों के बारे में कोई ऐसी प्रचलित जानकारी हो, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना न हो। आप कमेंट बॉक्स में भी अपनी राय दे सकते हैं।
इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।