दिल्ली में डिप्थीरिया से 44 बच्चों की मौत, जानें क्या है रोग के कारण और बचाव

देश की राजधानी दिल्ली में डिप्थीरिया (गलघोंटू) से पिछले 20 दिनों में 17 बच्चों की मौत हो चुकी है। बृहस्पतिवार की रात भी 2 बच्चों की मौत हुई है। इनमें से ज्यादातर बच्चों की मौत महर्षि वाल्मीकी संक्रामक रोग अस्पताल में हुई है, जो दिल्ली नगर निगम के अधीन है। बताया जा रहा है कि अस्पताल में डिप्थीरिया सिरम न होने की वजह से बच्चों को टीका नहीं लग पाया जिससे लगातार बच्चों की मौत हुई। इस वर्ष (पिछले 9 महीनों में) डिप्थीरिया से पीडि़त 326 बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए थे, जिनमें से अब तक 44 बच्चों की मौत हो चुकी है। जबकि पिछले वर्ष 546 मरीज भर्ती हुए थे जिनमें से 90 बच्चों की मौत हुई थी।
अस्पताल प्रशासन के अनुसार
अस्पताल के सीएमओ डॉ. सुशील गुप्ता का कहना है कि एंटी डिप्थीरिया सिरम की कीमत दस हजार रूपए से ज्यादा की है। इसे मरीज को वजन के अनुसार दिया जाता है। खास बात यह है कि इसे एक मानक तापमान के अंतर्गत इसे रख जाता है। ऐसा नहीं करने से यह सिरम अप्रभावी हो जाता है। डॉक्टर गुप्ता के अनुसार, छह से नौ सितंबर के बीच डिप्थीरिया के 85 मरीजों को भर्ती कराया गया, जिनमें 11 मरीजों को नहीं बचाया जा सका। इनमें से 79 दिल्ली से बाहर के और छह दिल्ली के हैं। उन्होंने बताया कि मरीज नौ साल तक की उम्र के थे।
क्या है डिप्थीरिया रोग
डिप्थीरिया को गलघोंटू नाम से भी जाना जाता है। यह कॉरीनेबैक्टेरियम डिफ्थीरिया बैक्टीरिया के इंफेक्शन से होता है। इसके बैक्टीरिया टांसिल व श्वास नली को संक्रमित करता है। संक्रमण के कारण एक ऐसी झिल्ली बन जाती है, जिसके कारण सांस लेने में रुकावट पैदा होती है और कुछ मामलों में तो मौत भी हो जाती है। यह बीमारी बड़े लोगों की तुलना में बच्चों को अधिक होती है।
इस बीमारी के होने पर गला सूखने लगता है, आवाज बदल जाती है, गले में जाल पड़ने के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है। इलाज न कराने पर शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण फैल जाता है। यदि इसके जीवाणु हृदय तक पहुंच जाये तो जान भी जा सकती है। डिप्थीरिया से संक्रमित बच्चे के संपर्क में आने पर अन्य बच्चों को भी इस बीमारी के होने का खतरा रहता है।
डिप्थीरिया से बचाव व उपचार
डिप्थीरिया के मरीज को एंटी-टॉक्सिन्स दिया जाता है। यह टीका व्यक्ति को बांह में लगाया जाता है। एंटी-टॉक्सिन देने के बाद चिकित्सक एंटी-एलर्जी टेस्ट कर सकते हैं, इस टेस्ट में यह जांच की जाती है कि कहीं मरीज की त्वचा एंटी-टॉक्सिन के प्रति संवेदनशील तो नहीं। शुरूआत में डिप्थीरिया के लिए दिये जाने वाले एंटी-टॉक्सिन की मात्रा कम होती है, लेकिन धीरे-धीरे इसकी मात्रा को बढ़ा सकते हैं।
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यदि बच्चे को नियमित टीके लगवाये जायें तो जान बच सकती है। नियमित टीकाकरण में डीपीटी (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस) का टीका लगाया जाता है। एक साल के बच्चे के डीपीटी के तीन टीके लगते हैं। इसके बाद डेढ़ साल पर चौथा टीका और चार साल की उम्र पर पांचवां टीका लगता है। टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया होने की संभावना नहीं रहती है।
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Source: ओन्ली माई हैल्थ सम्पादकीय विभाग Sep 21, 2018
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