
उम्र बढ़ने के साथ खून का दौरा आमतौर से कम होता जाता है। शरीर के सभी हिस्सों में पर्याप्त खून पहुंचाने के लिये सर्कुलेशन सिस्टम पर्याप्त प्रभावी नहीं रह जाता जिससे शरीर में वे हिस्से जहां खून का दौरा बेहतर नहीं होता वहां कोई चोट आदि लगने पर इंफेक्श
सेल्युलाइटिस एक त्वचा इंफेक्शन है जो बैक्टीरिया के कारण होता है और यदि समुचित ट्रीटमेंट न किया जाये तो यह घातक रूप से गंभीर और जानलेवा भी हो सकता है। सेल्युलाइटिस में त्वचा सूजन सहित लाल हो जाती है जो छूने में गर्म मालूम होती है और इसमें दर्द होता है। त्वचा के किसी खुले हिस्से-किसी कट, सोर या बाईट से बैक्टीरियम शरीर में प्रवेश कर जाता है। यदि बैक्टीरियल इंफेक्शन को नियंत्रित न किया जाये तो यह आपके लिम्फ नोड्स में गहरे टिश्युओं तक या ब्लडस्ट्रीम में प्रवेश कर जाता है। कुछ लोगों में जैसे बुजुर्गों में, डायबेटिक लोगों में या कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में सेल्युलाइटिस की आशंका ज़्यादा होती है।
लक्षण
सेल्युलाइटिस शरीर में कहीं भी हो सकता है लेकिन इससे आमतौर से प्रभावित होने वाले क्षेत्र हैं चेहरा और शरीर के बाहरी खुले सिरे। सेल्युलाइटिस के लक्षण ये हैं
- त्वचा में सूजन होना
- लालिमा
- गर्माहट का अहसास होना
- दर्द और नाजुक दशा होना
- त्वचा की कसावट भरी चमकदार दिखावट
- संक्रमित क्षेत्र फैलता है
- लक्षणों के साथ बुखार और मसल्स में दर्द भी होने लगता है
- संक्रमित हिस्से के ऊपर की त्वचा पर लाल धब्बे या परत दिखती है
- कई बार छाले पड़ जाते हैं
कारण
सेल्युलाइटिस बैक्टीरिया के कारण होता है जो एक से अधिक प्रकार का हो सकता है। सेल्युलाइटिस फैलाने वाले सबसे कॉमन बैक्टीरिया स्ट्रेप्टोकोकस और स्टेफीलोकोकस हैं। कोई कट या सोर और यहां तक कि हीलिंग त्वचा भी सेल्युलाइटिस उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया का प्रवेश बिंदु हो सकते हैं। कुछ प्रकार के कीड़ों के काट लेने से भी सेल्युलाइटिस उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया का प्रसार हो सकता है।
जोखिम के कारण
इम्यूनोडिफिशिएंसी
कमजोर इम्यून सिस्टम, कमजोर पोषण बीमारी या दवाओं का प्रयोग आदि का नतीजा हो सकता है। यदि बीमारियां फैलाने वाले बैक्टीरिया या वायरस का सामना करने के लिये इम्यून सिस्टम पर्याप्त ताकतवर नहीं है तो शरीर के लिये खुद को विभिन्न इंफेक्शनों से बचाये रखना मुश्किल होता है। जहां कुछ विशेष बीमारियां जैसे एचआईवी आपके इम्यून सिस्टम को कमजोर बनाती हैं, वहीं कुछ दवायें भी इम्यून सिस्टम पर बुरा असर डालती हैं। कार्टिकोस्टेरॉयड दवायें या आर्गन ट्रांसप्लांट के समय एन्टि-रिजेक्शन उपायों के तौर पर दी जाने वाली दवायें इम्यून सिस्टम पर विपरीत असर डाल सकती हैं।
उम्र
उम्र बढ़ने के साथ खून का दौरा आमतौर से कम होता जाता है। शरीर के सभी हिस्सों में पर्याप्त खून पहुंचाने के लिये सर्कुलेशन सिस्टम पर्याप्त प्रभावी नहीं रह जाता जिससे शरीर में वे हिस्से जहां खून का दौरा बेहतर नहीं होता वहां कोई चोट आदि लगने पर इंफेक्शन फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
डायबिटीज
डायबिटीज लोगों का न केवल इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है बल्कि शरीर के निचले सिरों तक खून का दौरा भी कम हो जाने का जोखिम उनके साथ जुड़ जाता है जिससे उनमें फुट अल्सर होने की संभावना अधिक हो जाती है। तलुवों में अल्सर हो जाने से ये सेल्युलाइटिस फैलाने वाले बैक्टीरिया के लिये एंट्री प्वांइट का काम करते हैं। खून के दौरा पर असर डालने वाली बीमारियां जैसे कि नसों का फैलना (वेरिकोज वेन्स) भी सेल्युलाइटिस जैसे बैक्टीरियल इंफेक्शन के लिये जोखिम कारक है।
आपकी त्वचा पर कोई चोट जैसे कोई कट सर्जिकल जख्म या फंगल इंफेक्शन, सेल्युलाइटिस फैलाने वाले बैक्टीरिया के लिये एंट्री प्वांइट का काम कर सकते हैं। लिम्फोमा जिसमें बांहों या टांगों में सूजन आ जाती है यह भी त्वचा को इंफेक्शन्स के प्रति कमजोर बना देता है।
उपचार
सेल्युलाइटिस के उपचार के लिये उपयोग की जाने वाली एन्टिबायोटिक्स संक्रमण के प्रसार की दशा पर निर्भर करती हैं। हॉस्पिटलाइजेशन की सलाह भी दी जा सकती है। यदि इंफेक्शन मामूली हो तो खाने के लिये एन्टिबायोटिक गोलियां दी जाती हैं और लगातार फॉलो-अप किया जाता है।
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