इबोला के बाद सामने आया खतरनाक वायरस जीका आज हर किसी के गले की हड्डी बना हुआ है।
इबोला के बाद सामने आया खतरनाक वायरस जीका आज हर किसी के गले की हड्डी बना हुआ है। मच्छर से फैलने वाला यह वायरस बहुत खतरनाक है। यह सीधे नवजात को अपना शिकार बनाता है। इस वायरस से प्रभावित होने वाले बच्चे की सारी जिंदगी विशेष देखभाल करनी पड़ती है, क्योंकि विषाणुओं के प्रभाव से वहां के नवजात छोटे सिर के साथ पैदा हो रहे हैं। यह इस रोग का सबसे बड़ा लक्षण हैं। लेकिन हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि राजस्थान में जीका वायरस जनित रोग का संबंध सिर का विकास सामान्य से कम होने यानी माइक्रोसेफाली से नहीं पाया गया है। माइक्रोसेफाली जन्मजात विकृति है, जिसमें बच्चों के सिर का विकास सामान्य से कम होता है यानी सिर का आकार काफी छोटा होता है।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि जीका वायरस जनित रोग के एडवांस्ड मॉलिक्यूलर स्टडीज में बताया गया है कि राजस्थान में वर्तमान में जीका वायरस से प्रभावित मरीजों में माइक्रोसेफाली और एडीज मच्छर में पाए जाने वाले जीका वायरस का संबंध नहीं है। इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने जयपुर में इसके प्रकोप के अलग-अलग समय पर जीका वायरस के पांच नमूनों से नतीजा निकाला। जयपुर में जीका वायरस के प्रकोप में 135 लोग प्रभावित हुए हैं।
हालांकि सरकार जीका वायरस से गर्भवती महिलाओं पर होने वाले खतरों की संभावना की निगरानी कर रही है, क्योंकि यह रोग भविष्य में अलग रूप ले सकता है या कुछ अन्य अज्ञात कारक माइक्रोसेफाली में भूमिका निभा सकता है और अन्य जन्मजात विकृति हो सकती है।मंत्रालय ने कहा कि रोजाना आधार पर हालात की समीक्षा की जा रही है। जीका वायरस के लिए करीब 2,000 नमूनों की जांच की गई, जिनमें से 159 पॉजिटिव मामलों की पुष्टि हुई है।
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जीका वायरस एडीज इजिप्टी नामक मच्छर से फैलता है। यह वही मच्छर है जो पीला बुख़ार, डेंगू और चिकुनगुनिया जैसे विषाणुओं को फैलाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। संक्रमित मां से यह नवजात में फैलती है। यह ब्लड ट्रांसफ्यूजन और यौन सम्बन्धों से भी फैलती है। हालांकि, अब तक यौन सम्बन्धों से इस विषाणु के प्रसार का केवल एक ही मामला सामने आया है। जीका को पहचानना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसके कोई विशेष लक्षण नहीं हैं। लेकिन मच्छरों के काटने के तीन से बारह दिनों के बीच चार में से तीन व्यक्तियों में तेज बुखार, रैशेज, सिर दर्द और जोड़ों में दर्द के लक्षण देखे गये हैं।
इसकी रोकथाम के लिये अब तक दवाई नहीं बनी और न ही इसके उपचार का कोई सटीक तरीका सामने आया है। ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे अप्रत्याशित बताया और कहा कि विज्ञान ने अभी इसे रोकने में सफलता हासिल नहीं की है। इसलिए बचना ही बेहतर है। अमेरिका की सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार समूचे विश्व में इस तरह के मच्छरों के पाये जाने के कारण इस विषाणु का प्रसार दूसरे देशों में भी हो सकता है। भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता।
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