महिलाओं में गर्भपात के कई कारण हो सकते हैं। इनमें से एक मोलर प्रेग्नेंसी भी है। भारत में हर साल लाखों महिलाएं मोलर प्रेगनेंसी का शिकार होती हैं।
महिलाओं में गर्भपात के कई कारण हो सकते हैं। इनमें से एक मोलर प्रेग्नेंसी भी है। भारत में हर साल लाखों महिलाएं मोलर प्रेगनेंसी का शिकार होती हैं। सामान्य गर्भधारण में महिलाओं के गर्भ में गर्भनाल या प्लैंसेंटा का विकास होता है, जिसके माध्यम से शिशु को पोषण मिलता है। लेकिन मोलर प्रेग्नेंसी की अवस्था में गर्भनाल में कुछ टिशूज का निर्माण हो जाता है या कई बार ट्यूमर जैसी संरचना बन जाती है, जो शिशु के विकास को प्रभावित कर सकती है। आइए आपको बताते हैं क्या है मोलर प्रेग्नेंसी और क्या हैं इसके लक्षण और खतरे।
महिलाओं में मोलर प्रेग्नेंसी कई बार खतरनाक हो सकती है क्योंकि ये गर्भपात का कारण बनती है। मोलर प्रेग्नेंसी का कारण अंडाणु होता है। सामान्य अवस्था में महिलाओं में जब अंडे का निषेचन होता है, तो उसमें पिता और मां दोनों के 23-23 क्रोमोजोम मौजूद होते हैं। लेकिन कंप्लीट मोलर प्रेग्नेंसी की स्थिति में निषेचित अंडे में माता का कोई क्रोमोसोम नहीं होता है, जबकि पिता के क्रोमोसोम दोगुने हो जाते हैं। ऐसा होने पर निषेचित हुआ अंडा विकसित नहीं हो पाता है और कुछ हफ्तों में ही मर जाता है। इसे ही गर्भपात कहते हैं।
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मोलर प्रेग्नेंसी की स्थिति में शुरुआत में आपको गर्भवती होने के सभी लक्षण नजर आते हैं, क्योंकि गर्भावस्था में होने वाले सभी हार्मोनल बदलाव आपके शरीर में घटित होते हैं मगर समय बीतने के साथ कुछ अन्य लक्षण नजर आने लगते हैं, जैसे-
आमतौर पर 20 साल से कम उम्र और 35 साल से बड़ी उम्र की महिलाओं को मोलर प्रेगनेंसी का खतरा ज़्यादा होता है। मोलर प्रेग्नेंसी अनुवांशिक समस्या है इसलिए अगर आपके परिवार में या आपको ये समस्या पहले हो चुकी है, तो इसके दोबारा होने की संभावना बनी रहती है। इसके अलावा लंबे समय तक गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन, इमरजेंसी पिल्स का बहुत ज्यादा सेवन या एक से ज्यादा बार गर्भपात करवाना भी मोलर प्रेग्नेंसी का कारण हो सकता है।
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लक्षणों के आधार पर चिकित्सक आपकी जांच करते हैं। मोलर प्रेग्नेंसी का पता अल्ट्रासाउंड के द्वारा लगाया जा सकता है। मोलर प्रेग्नेंसी होने पर प्लैसेंटा में टिशूज का गुच्छा बनने लगता है जो कि अल्ट्रासाउंड में आसानी से दिखाई देता है। मोलर गर्भधारण का पता रक्तजांच के माध्यम से एचसीजी स्तर पता करके भी लगा सकते हैं। ऐसे में एचसीजी स्तर अधिक तेजी से बढ़ने लगता है। कुछ चिकित्सकों का मानना है कि इसका खतरा उन महिलाओं को ज्यादा होता है, जिनका ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव होता है। मोलर गर्भधारण का पता चलने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
मोलर प्रेग्नेंसी के इलाज के लिए प्लैसेंटा से अतिरिक्त ऊतकों को ऑपरेशन द्वारा हटाया जाता है,जिसके लिए डी एंड सी (डायलेशन एंड क्युरेटेज) ऑपरेशन किया जाता है। इसमें कुछ ख़ास औजारों की मदद से महिला के सर्विक्स का एक छोटा सा प्रारंभिक हिस्सा काट दिया जाता है। कई बार शुरुआती अवस्था में दवाईयों के जरिए भी इसे दूर किया जा सकता है। इलाज के बाद दोबारा मोलर गर्भधारण न हो, इसके लिए लगभग 6 महीने तक निगरानी रखना आवश्यक है। मोलर गर्भधारण के इलाज के दौरान दोबारा गर्भधारण के लिए कुछ समय का अंतराल जरूरी है। जैसे 6 महीने तक लगातार जांच उसके बाद डॉक्टर की सलाह पर ही पुनः गर्भधारण की सोचें।
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