सिर्फ इन 3 तरह के दर्द में ही लें पेन किलर्स, नहीं तो फायदे की जगह होगा नुकसान

शरीर के अलग अलग हिस्सों में दर्द जाहिर सी बात है। अगर व्यक्ति ज्यादा काम कर लें या तनाव ले ले तो उसे दर्द होने लगता है। शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की थकान इंसान को परेशान करती है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि हर दर्द में दवा का सेवन नहीं करना ...

Written by: Rashmi Upadhyay Updated at: 2019-02-05 17:00

शरीर के अलग अलग हिस्सों में दर्द जाहिर सी बात है। अगर व्यक्ति ज्यादा काम कर लें या तनाव ले ले तो उसे दर्द होने लगता है। शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की थकान इंसान को परेशान करती है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि हर दर्द में दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि कई बार दर्द का वास्तविक संबंध हमारे मस्तिष्क से भी होता है। किसी भी शारीरिक तकलीफ का मन से भी बहुत करीबी रिश्ता है। इसी वजह से जब व्यक्ति बहुत व्यस्त होता है तो चोट लगने पर भी उसे दर्द का एहसास नहीं होता। दर्द प्रबंधन में मनोविज्ञान की क्या भूमिका हो सकती है आइए जानते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान

  • हमेशा सक्रिय रहें और रोजमर्रा के अधिकतर काम खुद करने की कोशिश करें।
  • सक्रियता के साथ अपनी शारीरिक क्षमता की सीमाओं को पहचानना भी बहुत ज़रूरी है। अपने लिए पेन मैनेजमेंट की योजना बनाएं। फिर उस सीमा से बाहर जाकर कोई भी कार्य न करें।  
  • सामाजिक संबंध बढ़ाएं, जरूरत पडऩे पर अपनों से मदद मांगने में संकोच न करें।
  • जब दर्द महसूस हो तो उस दौरान ध्यान बंटाने के लिए अपनी रूचि से जुड़े किसी कार्य में व्यस्त हो जाएं। इससे दर्द का एहसास कम होगा।  
  • डॉक्टर द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पूरी तरह पालन करें। 
  • नियमित दिनचर्या अपनाएं और पर्याप्त नींद लें। इससे आपके लिए पेन मैनेजमेंट करना आसान हो जाएगा।  
  • शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने वाले दर्द का सामना सभी को करना पड़ता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों के मुताबिक आज विश्व भर में लगभग 100 मिलियन लोग आंशिक रूप से किसी न किसी प्रकार के दर्द से पीडि़त होते हैं और  इसी वजह से पेन किलर्स पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है।   

दर्द का मनोवैज्ञानिक पहलू

हर तरह के दर्द का प्रबंधन जनरल फिजि़शियन और पेन किलर्स से नहीं किया जा सकता। कई बार कुछ मनोवैज्ञानिक कारणों से भी व्यक्ति को स्थायी दर्द की समस्या होती है, ऐसी में मनोचिकित्सक से सलाह लेना फायदेमंद साबित होता है। कई बार ब्रेन की किसी गड़बड़ी के कारण भी दर्द हो सकता है। यह एक जटिल अवस्था होती है, जिसमें शारीरिक रोग के लक्षण नजर आते हैं पर उसका संबंध मस्तिष्क से होता है। मसलन डिप्रेशन या एंग्ज़ाइटी की वजह से भी ऐसा दर्द हो सकता है। ऐसे में मनोचिकित्सक से सलाह लेना फायदेमंद होता है। 

तनाव है मूल वजह

लंबे समय तक होने वालेे हलके दर्द के लिए प्राय: तनाव ही जि़म्मेदार होता है। ऐसी स्थिति में मनोचिकित्सक मल्टीडिसिप्लिनरी तरीका अपनाकर स्थायी दर्द के इलाज का बेहतरीन विकल्प ढूंढते हैं। फाइब्रोमाइल्जिया या फाइब्रोसाइटिस भी एक ऐसी शारीरिक अवस्था है, जिसका कोई इलाज नहीं है। इसके लक्षण मांसपेशियों में दर्द का संचार करते हैं। इसमें बदहवासी, नींद या याददाश्त में कमी और मूड स्विंग जैसे लक्षण नज़र आते हैं। भारतीय आबादी के बड़े हिस्से, खासतौर पर स्त्रियों में इन दोनों समस्याओं के लक्षण देखने को मिलते हैं। कई लोगों में वर्षों तक या आजीवन इसके लक्षण बने रहते हैं। कई बार व्यायाम की कमी, आनुवंशिकता, पोस्ट ट्रॉमेटिक डिसॉर्डर (किसी भी तरह की मानसिक या शारीरिक प्रताडऩा झेलने से होने वाली मनोवैज्ञानिक समस्या) के बाद भी व्यक्ति के शरीर में ऐसे लक्षण नज़र आ सकते हैं।

आमतौर पर ऐसी समस्या के उपचार के लिए दर्द निवारक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन तनाव कम करने के लिए मसल्स स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़, मॉर्निंग वॉक जैसी एक्टिविटीज़ भी फायदेमंद साबित होती हैं। एक्सरसाइज़ करने से मांसपेशियों में मज़बूती आती है। साथ ही शरीर में एंडॉर्फिन नामक हॉर्मोन का संचार बढ़ता है, जो दर्द और तनाव से लडऩे के साथ अच्छी नींद दिलाने में भी मददगार होता है। मालिश जैसी कॉम्प्लिमेंट्री थेरेपी से भी तनाव से संबंधित दर्द को दूर किया जा सकता है। योग, स्विमिंग और पिलेटीज एक्सरसाइज़ जैसी इंपैक्ट ऐक्टिविटीज़ भी दर्द निवारक दवाओं का बेहतर विकल्प साबित हो सकती हैं। फाइब्रोमाइल्जि़या से पीड़ित लोगों को कुछ ही सेशन के बाद यह महसूस होने लगता है कि अब वे अपने दर्द का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं। इसके अलावा जिन्हें डिप्रेशन या  डीजेनरेटिव मेडिकल कंडीशन यानी सामान्य स्वास्थ्य में गिरावट की समस्या हो, उन्हें भी मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।

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