नई रिसर्च में पाया गया है कि जो यंगस्टर या टीनएजर रात को देर से सोते हैं या देर तक जागना पसंद करते हैं, उन्हें अस्थमा-एलर्जी हो सकती है।
आजकर अधिकतर यंगस्टर या टीनएजर रात को देर से सोना और सुबह देर से उठना पसंद करते हैं। जिसके पीछे पढ़ाई, सोशल मीडिया पर घंटो बिताना, वेब सीरीज या मूवीज देखना देर से सोने का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि कभी-कभी ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन जिन लोगों ने इसे एक दिनचर्या बना लिया है, उनके लिए यह नुकसानदायक है। देर से सोने या देर तक जागने वाले लोगों में बाद के जीवन में अस्थमा और एलर्जी विकसित करने की अत्यधिक संभावना होती है। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि ये स्वास्थ्य समस्याएं नींद चक्र से जुड़ी हैं। एक खराब नींद या सोने-उठने के चक्र में गड़बड़ी सांस की बीमारियों और एलर्जी को ट्रिगर कर सकता है, खासकर किशोरावस्था में।
विज्ञान पत्रिका ईआरजे ओपन रिसर्च में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, नीं में गड़बड़ी या देर से सोना टीनएजर्स में अस्थमा के खतरे को बढ़ाता है। इसके साथ ही, अस्थमा के लक्षण शरीर की आंतरिक घड़ी से जुड़े होते हैं। यह शोध श्वसन स्वास्थ्य को बनाए रखने में नींद के समय और नींद के चक्र के महत्व को दर्शाता है। यह स्लीपिंग पैटर्न और स्लीप हार्मोन मेलाटोनिन के कारण होता है, जो अस्थमा को प्रभावित करते हैं। इतना ही नहीं नींद में गड़बड़ी कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी ट्रिगर करती है।
इसे भी पढ़ें: ब्रेन इंफ्लेमेशन और सन्निपात का कारण हो सकता है कोरोनावायरस, नई रिसर्च में हुआ खुलासा
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. सुभब्रत मोइत्रा पल्मोनरी मेडिसिन विभाग, अल्बर्टा यूनिवर्सिटी कनाडा का कहना है: "अस्थमा और एलर्जी की बीमारी दुनिया भर के बच्चों और किशोरों में आम है और इसका प्रचलन बढ़ रहा है। हम इस वृद्धि के कुछ कारणों को जानते हैं, जैसे कि प्रदूषण और तंबाकू के धुएं के संपर्क में, लेकिन हमें अभी भी और अधिक जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता है। ”
"नींद और 'स्लीप हार्मोन' मेलाटोनिन अस्थमा को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है, इसलिए हम देखना चाहते थे कि किशोरों के देर से सोने या जल्दी सोने जाने का संबंस उनके अस्थमा जोखिम से जुड़ा हो सकता है या नहीं।"
यह शोध 1,684 टीनएजर्स पर किया गया था, जो अस्थमा और एलर्जी से संबंधित बीमारियों के प्रसार और जोखिम कारकों में भाग ले रहे थे। उन सभी से उनकी नींद या सोने की आदतों की पहचान करने के लिए कुछ सवाल पूछे गए थे। अस्थमा के कुछ लक्षण, जो वे कुछ अन्य संबंधित जानकारी के साथ दिखा रहे हैं। शोध दल ने पाया कि देर तक जागने या देर से सोने वाले किशोरों में अस्थमा और एलर्जी का खतरा तीन गुना अधिक होता है।
इसे भी पढ़ें: खुश रहने से हो सकती हैं गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं दूर, शोध में हुआ खुलासा
डॉ. मोइत्रा कहते हैं: "हमारे परिणाम बताते हैं कि पसंदीदा नींद के समय और टीनएजर्स में अस्थमा और एलर्जी के बीच एक कड़ी है। हम निश्चित नहीं हो सकते हैं कि देर तक जागना अस्थमा का कारण है, लेकिन हम जानते हैं कि नींद हार्मोन मेलाटोनिन अक्सर देर से सोने वालों में सिंक से बाहर रहता है और जो बदले में टीनएजर्स की एलर्जी की प्रतिक्रिया को प्रभावित कर सकता है। हम यह भी जानते हैं कि बच्चों और युवाओं को मोबाइल फोन, टैबलेट और अन्य उपकरणों से प्रकाश में घंटे बिताने की आदत पड़ रही है और जिससे वह रात में देर तक जाग रहे हैं। यह हो सकता है कि किशोरों को अपने उपकरणों को रखने और थोड़ा पहले बिस्तर पर लाने के लिए प्रोत्साहित करने से अस्थमा और एलर्जी के जोखिम को कम करने में मदद मिले। यह कुछ ऐसा है, जिसे हमें और अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है। "
Read More Article On Health News In Hindi
इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।