खर्राटे लेना लाइफस्टाइल से जुड़ी बाकी बीमारियों की तरह ही है, जो इस बात का सूचक है कि आप एक बहुत अनहेल्दी लाइफस्टाइल रूटीन फॉलो कर रहे हैं।
सोते समय खर्राटे लेना बबुत आम है, पर वहीं ये आपके खराब होते स्वास्थ्य का भी एक गंभीर सूचक है। खर्राटे लेना उन लोगों में अधिक आम है जो 40 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और जिनमें अत्यधिक वजन, धूम्रपान की आदतें या सांस लेने में समस्या है। वहीं खर्राटे अक्सर बढ़े हुए टॉन्सिल, बढ़े हुए जीभ या गर्दन के चारों ओर अतिरिक्त वजन का कारण बनते हैं। इन सबके कारण फेफड़ों में यात्रा करने के लिए वायुमार्ग को बहुत संकीर्ण बना जाता है और इससे गले में कंपन होता है, इसलिए खर्राटे की आवाज होती है। पर हाल ही में आए रिसर्च की मानें, तो खर्राटे का मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ता है। वो कैसे आइए जानते हैं।
ठीक से काम करने के लिए आपके मस्तिष्क को नींद की आवश्यकता होती है। नींद के दौरान भी, मस्तिष्क काम करना जारी रखता है, क्योंकि यह दिन की घटनाओं को संसाधित करता है। तो एक अच्छी रात की नींद स्मृति, निर्णय लेने, सीखने और अन्य संज्ञानात्मक कार्यों को बढ़ाने के लिए आवश्यक है। वहीं खर्राटे लेने से इन सब में खलल पड़ता है, जिससे व्यक्ति थका हुआ, तनावमय और चिड़चिड़ा महसूस करता है।
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नींद से वंचित मस्तिष्क में कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं जो जरूरी नहीं कि बहुत स्पष्ट हैं, लेकिन परेशान करने वाले हैं। यह संज्ञानात्मक हानि की ओर जाता है, जिसमें खराब नींद स्मृति को संग्रहित करने और पुनः प्राप्त करने में मस्तिष्क की दक्षता को कम करती है। यह रचनात्मकता, एकाग्रता में बाधा डाल सकता है, और जोखिम लेने वाले व्यवहारों में वृद्धि कर सकता है। वहीं इसके कई और नुकसान भी है।
परेशान नींद चिंता का कारण बन सकती है, और यह चिंता तनाव से निपटने की क्षमता को कम करती है। जो लोग पहले से ही चिंता से पीड़ित हैं, नींद की कमी उनके लक्षणों को खराब कर सकती है। जिन व्यक्तियों को स्लीप एपनिया होता है, उनमें अवसाद विकसित होने की संभावना अधिक होती है। ऑक्सीजन की कमी और नींद की गड़बड़ी मस्तिष्क के कामकाज में परिवर्तन का कारण बन सकती है, जिससे अवसाद हो सकता है। जो व्यक्ति अधिक खर्राटे लेते हैं उनका निजी जीवन भी बहुत प्रभावित रहता है।
खर्राटे लेने वाले व्यक्तियों में आत्मसम्मान की कमी जैसी स्थतियां भी देखी गई हैं। साथ भी पाया जाता है और यह उनके रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जहां वे अपने खर्राटों के कारण असुरक्षित महसूस करते हैं, वे व्यवहार में भी शामिल होते हैं जैसे कि अपने साथी के साथ सोने से परहेज करते हैं या यहां तक कि अन्य सदस्यों के साथ अपने बिस्तर या कमरे को साझा करने से भी बचते हैं। वहीं इसके अन्य नुककानों की बात करें, तो
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