डायबिटीज के दुष्परिणाम के चलते किडना की खराबी आम बात होती जा रही है। सामान्यतः 20 से 30 प्रतिशत मधुमेह रोगियों में किडनी की खराबी अर्थात क्रोनिक डायबिटीक नैफरोपैथी हो जाती है।
किडनी अर्थात गुर्दे शरीर के बेहद महत्वपूर्ण अंग होते हैं और हमारे शरीर से रक्त में एकत्रित हुई गंदगी को हटाने और पानी व मिनरल्स के संतुलन को बनाए रखने का काम करते हैं। शरीर के इस काम में अक्षमता ही किडनी फेल्योर कहलाती है जोकि एक गंभीर अवस्था होती है। डायबिटीज के दुष्परिणाम के चलते किडना की खराबी आम बात होती जा रही है। सामान्यतः 20 से 30 प्रतिशत मधुमेह रोगियों में किडनी की खराबी अर्थात डायबिटीक नैफरोपैथी हो जाती है।
क्रोनिक किडनी फेल्योर के विभिन्न कारणों में सबसे महत्वपूर्ण कारण डायबिटीज है जो बेहद विकराल रूप में फैल रहा है। डायलिसिस करा रहे क्रोनिक किडनी फेल्योर के 100 मरीजों में से लगभग 35 से 40 मरीजों की किडनी खराब होना का कारण डायबिटीज होता है। डायबिटीज के कारण मरीजों की किडनी पर हुए असर का समय पर जरूरी इलाज करा लिया जाए तो गंभीर किडनी फेल्योर को रोका जा सकता है।
किडनी में से सामान्यतः हर मिनट में 1200 मिली लीटर रक्त प्रवाहित होकर शुद्ध होता है। डायबिटीज नियंत्रित न होने पर किडनी में से प्रवाहित होकर जाने वाले रक्त की मात्रा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, जिसकी वजह से किडनी को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और उसको नुकसान होता है। यदि लंबेसमय तक किडनी को इस तरह का दबाव ढेलना पड़े तो खून का दबाव बढ़ जाता है और किडनी को काफी नुकसान पहुंचता है।
चेहरे, पैर व आंखों के चारों ओर सूजन होना, भूख कम लगना, कमजोरी, उल्टी, थकान, कम उम्र में उच्च व अनियंत्रित रक्तचाप, कमर व पसलियों के निचले हिस्से में दर्द आदि किडनी रोग के लक्षण हो सकते हैं। इस तरह के लक्षण सामने आने पर तुरंत विशेषज्ञ चिकित्सक से मिलकर जांच व इलाज कराना चाहिये।
यदि आपके डॉक्टर ने आपको बताया है कि डायबिटीज के कारण आपकी किडनी प्रभावित हो गयी है और डायबिटीक नेफ्ररोफैथी शुरू हो चुकी है तो इसका यह मतलब नहीं है कि आपकी किडनी खराब हो गयी है। दरअसल डायबिटकी नैफरोपैथी के शुरुआती दौर में मरीज को कोई खास समस्या नहीं होती है। कई बार किडनी के 80 प्रतिशत से अधिक खराब हो जाने पर लक्षण शुरू होते हैं। उस समय पैरों का फूलना, थकावट, उल्टी लगना, भूख न लगना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इसलिये हर डायबिटीज के मरीज का साल में कम से कम एक बार माईक्रल टेस्ट कराकर माइक्रो अल्बुमिनुरिया पॉजीटीव है या नहीं, यह जानना जरूरी होता है। माइक्रल टेस्ट का पॉजीटीव होना केवल यह बताता है कि डायबिटीज का किडनी पर प्रभाव होना शुरू हो चुका है। यह किडनी के फेल होने की अवस्था नहीं होती है। यदि इस समय बचाव किया जाये तो भविष्य में किडनी की खराबी को रोका जा सकता है।
डायबिटीज की वजह से किडनी की खराबी शुरू होने के बाद यह रोग ठीक हो ही जाए ऐसा जरूर नहीं, लेकिन जल्द अचित उपचार व परेहज कर डायलिसिस व किडनी ट्रांसप्लांट जैसे महंगे और मुश्किल उपचार को काफी लंबे समय के लिय टाला जरूर जा सकता है।
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