मौसम में बदलाव हर व्यक्ति महसूस कर रहा है। अप्रैल की शुरुआत होते ही मौसम ने भी अपनी करवट बदल ली है। दोपहर में काफी तेज धूप होती है जबकि सुबह और शाम का मौसम भी अब पूरी तरह से गर्म है। ऐसे मौसम में कई नई बीमारियां पनपती है। इस दिनों भारत में खासक...
मौसम में बदलाव हर व्यक्ति महसूस कर रहा है। अप्रैल की शुरुआत होते ही मौसम ने भी अपनी करवट बदल ली है। दोपहर में काफी तेज धूप होती है जबकि सुबह और शाम का मौसम भी अब पूरी तरह से गर्म है। ऐसे मौसम में कई नई बीमारियां पनपती है। इस दिनों भारत में खासकर उत्तर भारत में स्वाइन फ्लू का काफी तेजी से फैल रहा है। स्वाइन फ्लू एक बहुत ही खतरनाक और संक्रामक रोग है। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में जाने से यह रोग दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है। आजकल स्वाइन फ्लू लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है और उत्तर भारत में लोग तेज़ी से इसके शिकार हो रहे हैं। इसी वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित किया है। इसका नाम सुनते ही लोग चिंतित हो जाते हैं और इस बीमारी को लेकर लोग के बीच कई तरह की भ्रांतियां प्रचलित हैं। क्यों होती है यह समस्या और इससे कैसे बचाव किया जाए बता रही हैं, गुरुग्राम स्थित मेदांता हॉस्पिटल के इंटर्नल मेडिसिन डिपार्टमेंट की डायरेक्टर डॉ. सुशीला कटारिया।
मामूली सर्दी-ज़ुकाम की तरह स्वाइन फ्लू होने पर भी नाक से पानी आना, गले मेें खराश और सिर सहित पूरे शरीर में दर्द जैसे लक्षण नज़र आते हैं। दरअसल यह श्वसन-तंत्र से संबंधित संक्रामक बीमारी है। इसके लिए एच-1 और एन-1 नामक इंफ्लुएंजा वायरस को जि़म्मेदार माना जाता है, जो हवा के माध्यम से हमारे आसपास बहुत तेज़ी से फैल जाता है। आमतौर पर इसके वायरस 2-3 घंटे तक जीवित रहते हैं। इसके संबंध में यह भ्रामक धारणा प्रचलित है कि इसके वायरस पशुओं के माध्यम से फैलते हैं। वास्तव में इस बीमारी का पशुओं से कोई संबंध नहीं है। इसका संक्रमण एक से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है।
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इसी वजह से मरीज़ के आसपास रहने वाले लोग बीमारी के शिकार बन जाते हैं। दरवाज़ा, फर्नीचर, फोन, तौलिया, रिमोट और की-बोर्ड जैसी वस्तुओं के ज़रिये यह संक्रमण तेज़ी से लोगों के बीच फैलने लगता है। अगर किसी व्यक्ति को ऐसी समस्या हो तो कोशिश यही होनी चाहिए, सार्वजनिक स्थलों पर न जाए, ऐसी स्थिति में बच्चे को स्कूल न भेजें क्योंकि उससे दूसरे बच्चों में संक्रमण फैल सकता है, अपने पर्स और बच्चों के स्कूल बैग में हमेशा हैंड सैनिटाइज़र रखें और उन्हें इसके इस्तेमाल का सही तरीका भी बताएं। खांसते समय हमेशा रुमाल का प्रयोग करें, अगर घर में किसी को ऐसी समस्या हो तो उसे बच्चों से दूर रखें।
लक्षणों में मामूली अंतर होने के कारण अकसर लोग वायरल फीवर, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और चिकनगुनिया के फर्क को पहचान नहीं पाते, जो इस प्रकार है:
वायरल फीवर : जैसा कि इसके नाम से ही ज़ाहिर है कि यह समस्या वायरस के संक्रमण से होती है। इसकी वजह से सांस की नली और फेफडा़ें में भी इन्फेक्शन फैल जाता है। नाक से पानी गिरना, गले में खराश, बुखार और थकान आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। लगभग एक सप्ताह के बाद यह समस्या अपने आप दूर हो जाती है और कई बार एंटीबायोटिक्स लेने की भी ज़रूरत पड़ती है लेकिन डॉक्टर की सलाह के बिना अपने मन से किसी भी दवा का सेवन न करें।
बर्ड फ्लू : अकसर यह समस्या पालतू पक्षियों के संपर्क में आने वाले लोगों को होती है। सांस की नली में संक्रमण इसका शुरुआती लक्षण है। इसके अलावा ऐसी समस्या होने पर बुखार, वोमिटिंग और आंखों से पानी गिरना जैसे लक्षण भी नज़र आते हैं।
चिकनगुनिया : इस समस्या के नाम से कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि इस बीमारी का संबंध चिकन से है पर वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल यह संक्रमण एडिस नामक मच्छर के काटने से फैलता है, जो अकसर दिन में ही सक्रिय रहते हैं। इसके लक्षण भी डेंगू से मिलते-जुलते होते हैं। कंपकंपी के साथ बुखार, जोड़ों में तेज़ दर्द, त्वचा पर लाल रंग के चकत्ते और सिरदर्द आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। इससे बचाव के लिए अपने घर के आसपास स$फाई का पूरा ध्यान रखें, कहीं भी गंदा पानी जमा न होने दें, कीटनाशक दवााओं का नियमित छिड़काव करें, सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और बच्चों को फुल स्लीव्स के कपड़े पहनाएं।
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स्वाइन फ्लू : इसमें ऊपर बताई गई तीनों समस्याओं से मिलते-जुलते लक्षणों के अलावा मरीज़ में कुछ अन्य बातें भी नज़र आती हैं। मसलन वायरल फीवर में अकसर सूखी खांसी होती है लेकिन ऐसी समस्या होने पर खांसी के साथ अधिक मात्रा में कफ भी निकलता है। आमतौर पर इसके लक्षण मामूली सर्दी-ज़ुकाम जैसे ही होते हैं और कई बार बिना दवा के भी यह समस्या तीन-चार दिनों में अपने आप दूर हो जाती है। केवल 1-2 प्रतिशत लोग ही ऐसे होते हैं, जिनमें इस बीमारी के गंभीर लक्षण नज़र आते हैं। मसलन, कुछ लोगों में असहनीय दर्द, सांस लेने में तकलीफ, कफ के साथ खून आना और लो बीपी जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं। अगर इनमें से एक भी लक्षण नज़र आए तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
लक्षणों की गंभीरता के आधार पर स्वाइन फ्लू को तीन प्रमुख स्तरों में बांटा जा सकता है, जो इस प्रकार हैं:
अवस्था ए : इस बीमारी के शुरुआती दौर में सर्दी-ज़ु$काम, गले में खराश, हाथ-पैरों में दर्द और थकान जैसे लक्षण नज़र आते हैं, जिसे लोग गंभीरता से नहीं लेते।
अवस्था बी : इस स्तर पर अत्यधिक थकान और ठंडक महसूस होती है। अगर किसी व्यक्ति को पहले से ही डायबिटीज़, हाई बीपी, हृदय रोग या सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिज़ीज़) जैसी समस्या हो तो फ्लू के संक्रमण से व्यक्ति बीमारी की इस गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है, जो सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह साबित हो सकती है, इसलिए ऐसी स्थिति में बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
अवस्था सी : यह बीमारी की सबसे गंभीर अवस्था है, जिसमें व्यक्ति के रक्त में ऑक्सीजन का स्तर तेज़ी से गिरने लगता है। इसमें मरीज़ में वोमिटिंग और लूज़ मोशन जैसे लक्षण भी नज़र आने लगते हैं। सांस लेने में तकलीफ के साथ व्यक्ति का लिवर भी क्षतिग्रस्त हो सकता है। ऐसी अवस्था में मरीज़ की जान बचाने के लिए उसे ऑक्सीजन देने या वेंटिलेटर पर रखने की भी ज़रूरत पड़ती है।
इस बीमारी के लक्षणों की पहचान के बाद पीसीआर नामक टेस्ट किया जाता है। एन-1, एच-1 वायरस की पहचान के लिए नाक और गले में मौज़ूद फ्लूइड की भी जांच की जाती है। जांच के बाद अगर शरीर में बीमारी के वायरस पाए जाते हैं तो तत्काल उपचार शुरू कर दिया जाता है, ताकि मरीज़ को यथाशीघ्र आराम मिले। अंत में सबसे ज़रूरी बात, अगर बीमारी के लक्षण नज़र आएं तो बिना घबराए तुरंत डॉक्टर से सलाह लें और उसके सभी निर्देशों का पालन करें। अगर सही समय पर उपचार मिल जाए तो यह समस्या आसानी से दूर हो जाती है।
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