गर्भावस्था में डायबिटीज के कारण शिशु को मैक्रोसोमिया नामक बीमारी हो सकती है। इसके अलावा भी अन्य बीमारियां हैं, जो मां और शिशु दोनों को हो सकती हैं।
डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है और अगर यही डायबिटीज गर्भवती महिला को हो जाए, तब खतरा और बढ़ जाता है क्योंकि इसका असर होने वाले शिशु पर भी पड़ता है। कई बार महिलाएं प्रेगनेंसी से पहले ही डायबिटीज का शिकार होती हैं और कई बार गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की चपेट में आती हैं। दोनों ही स्थितियों में डायबिटीज गर्भवती महिला के साथ-साथ उसके गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित करता है। गर्भावस्था में डायबिटीज के कारण शिशु को मैक्रोसोमिया नामक बीमारी हो सकती है। इसके अलावा भी अन्य बीमारियां हैं, जो मां और शिशु दोनों को हो सकती हैं।
सामान्यतया जेस्टेशनल डायबिटीज गर्भधारण करने के 24 हफ्ते के बाद होती है। ऐसे में अगर इसमें लापरवाही बरती जाये तो ब्लड शुगर अनियंत्रित हो जाता है और इसका असर बच्चे पर पड़ता है। इसके कारण बच्चे का आकार बड़ा हो सकता है, क्योंकि बच्चे के पैंक्रियाज मां के ब्लड ग्लूकोज के हिसाब से इंसुलिन बनायेंगे, चिकित्सकीय भाषा में इसे मैक्रोसोमिया कहते हैं। अगर डायबिटीज अनियंत्रित हो तो बच्चे पर इसका असर पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा बच्चे के पैदा होते ही वह हाइपोग्लाइसीमिया में जा सकता है।
मैक्रोसोमिया ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे का वजन सामान्य से ज्यादा होता है। उसकी लंबाई भी ज्यादा हो सकती है। ऐसे बच्चों के पैदा होने में भी परेशानी आ सकती है। इस स्थिति में नार्मल डिलीवरी की संभावना बहुत कम होती है इसलिए शिशु को सर्जरी द्वारा ही पैदा करना पड़ता है। ग्लूकोज ज्यादा मात्रा में बनने के कारण यह स्थिति आती है।
इसे भी पढ़ें:- डिलीवरी के बाद महिलाओं में होते हैं ये बदलाव
मैक्रोसोमिया की शिकायत नवजात बच्चे में तब होती है, जबकि गर्भवती मां में रक्त में शुगर का लेवल बढ़ने पर गर्भनाल के द्वारा गर्भ में भी शुगर प्रवेश कर जाता है। इस तरह बच्चे के शरीर में अधिक मात्रा में शुगर के पहुंचने पर उसके पैनक्रियाज को ब्लड ग्लूकोज़ को एनर्जी में बदलने के लिए अधिक मात्रा में इंसुलिन का स्राव करना पड़ता है और यह फालतू की एनर्जी बच्चे के शरीर में जमा हो जाता है, जो बच्चे को मोटा कर देता है। ऐसे मोटे बच्चों में जन्म के समय मांसपेशियों में खिचाव और टूट फूट होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा अगर ब्लड शुगर पहले 8 हफ्ते में बढ़ता है तो बर्थ डिफेक्ट होने की संभावना भी रहती है।
जिन गर्भवती मां में जेस्टेशनल डायबीटीज की समस्याएं होती हैं, हो सकता है कि उनके पैदा होने वाले शिशु में शारीरिक संतुलन की समस्या उत्पन्न हो सकती है और इस वजह से बच्चे खड़े होने और चलने फिरने में काफी ज्यादा समय ले सकते है। जिन गर्भवती मां को गर्भावस्था के समय जेस्टेनल डायबीटीज की शिकायत थी उन्हें मोटे बच्चे होने की संभावना तो रहती ही है, लेकिन संभव है कि ऐसे बच्चे पैदा होने के बाद और भी मोटे हो जायें ।
इसे भी पढ़ें:- प्रेग्नेंसी के दौरान खतरनाक हो सकती है यूटीआई
जन्म के समय जिस बच्चे के मां को जेस्टेनल डायबीटीज की शिकायत थी ऐसे बच्चों को बढ़ने के साथ उनमें टाइप–2 डायबीटीज होने के खतरे भी बढ़ जाते है । लीवर के सही से काम न करने पर न्यूबार्न बेबी में जांडिस होने की भी संभावना कई गुणा बढ़ जाती है, जवानी में डायबीटीज होने के खतरे भी बढ़ जाते हैं ।
गर्भावस्था के दौरान अनियंत्रित मधुमेह के कारण बच्चा हाइपोग्लाइसीमिया के साथ पैदा होता है। ऐसी स्थिति इंसुलिन का स्तर बढ़ने के कारण होती है। मां के खून में शुगर की मात्रा ज्यादा होने से ऐसा होता है। इस अवस्था के साथ जब बच्चा पैदा होता है तो उसे जरूरत से ज्यादा इंसुलिन की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति के लिए बच्चे का शरीर अधिक मात्रा में इंसुलिन का निर्माण करता है।
ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप
Read More Articles On Pregnancy Problems In Hindi
इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।