कई बार माता पिता अंजाने में बच्चे की परवरिश में ऐसी गलतियां करते हैं, जो बच्चे की पर्सनैलिटी और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं।
मां-बाप अपने बच्चे का भला ही सोचते हैं और अपने बच्चे के साथ जान बूझ कुछ गलत नहीं करना चाहते। लेकिन फिर भी मां-बाप को कई बार ऐसा लगता है कि वह जो काम कर रहे हैं, वो बच्चे के भले और सुरक्षा के लिए ही कर रहे हैं लेकिन हो इसका उल्टा जाता है। कई बार मां बाप के ऐसे व्यवहार के कारण ही बच्चा परेशान हो जाता है और उनसे दूर होना शुरू कर देता है। बच्चे की मानसिक सेहत पर भी मां बाप की गलतियां बहुत ज्यादा असर डालती हैं। इसलिए आपको बच्चे की परवरिश के समय हर बात सोच समझ कर बोलनी चाहिए। हो सकता है आप भी जाने-अनजाने में अपने बच्चे की मानसिक सेहत को बर्बाद कर रहे हों। आइए जानते हैं ऐसी गलतियों के बारे में जो मां-बाप अनजाने में कर देते हैं लेकिन बच्चों पर इनका गहरा असर पड़ता है।
बच्चे को इमोशनल रूप से मां बाप की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अगर बच्चा किसी चीज से हर्ट होता है, तो आपको उसके साथ खड़ा होना चाहिए, न कि उसे ऐसी चीजें भूलने और इग्नोर करने के लिए कहें। अगर बच्चे की जीत होती है, तो उसे सेलिब्रेट करें न कि उसे छोटी जीत समझ कर इग्नोर कर दें। बच्चे को हर तरह से सपोर्ट करें।
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हो सकता है मां बाप ऐसा अपने बच्चे को बेहतर बनाने या उनमें मोटिवेशन जोड़ने के लिए कर रहे हों, ताकि वह भी अपने काम में बेहतर बन सके। लेकिन अगर आप हर चीज में अपने बच्चे को दूसरों के बच्चों से कंपेयर करते हैं, तो ऐसा करना काफी गलत है। इससे आपके बच्चे को ऐसा महसूस होगा कि जो काम वह कर रहा है, आप उसकी सराहना करने की बजाए, केवल दूसरों के बच्चों की फिक्र ज्यादा करते हैं।
बहुत से मां बाप बच्चे को परफेक्ट होने की उम्मीद करते हैं। परफेक्ट कोई भी नहीं हो सकता है। अगर आप उनके अच्छे नंबर लाने पर खुश होने की बजाए उनसे यह उम्मीद करते हैं कि अगली बार पूरे नंबर आने चाहिए, तो बच्चे के दिमाग में पूर्णता की भावना नहीं आएगी और वह खुद से कभी संतुष्ट नहीं हो पाएगा। इससे उसकी मानसिक सेहत काफी प्रभावित हो सकती है।
अगर आप भी अपने बच्चे को कोई काम करवाने या कोई बात मनवाने के लिए ब्लैक मेल करते हैं और खुद को उनके गार्जियन होने का हवाला देते हैं, तो ऐसा काफ़ी गलत है। अगर उनका किसी चीज का मन है, तो उनकी तरफ से भी सोचें। अगर वह काम बच्चे के लिए सुरक्षित है, तो उसे उसमें शामिल होने से न रोकें। 'मेरी परवाह न करो' या 'मैंने तुम्हारा हमेशा भला चाहा है'जैसे वाक्यों का प्रयोग न करें।
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अक्सर माता-पिता अपने बच्चों से उम्मीद रखते हैं कि वो उनकी हर बात मानेगा। लेकिन बदलते हुए जमाने के हिसाब से जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो और हमेशा मां बाप ही सही हों। हो सकता है बच्चे की बात भी जायज हो। इसलिए अगर बच्चा आपकी बात नहीं सुन रहा, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह आपकी रिस्पेक्ट नहीं करता।
अच्छा होगा अगर पेरेंट्स बच्चे की मानसिक सेहत के लिए यह सब गलतियां करने से बचें। आपको बच्चों के मन के हिसाब से सोचकर ही उसके निर्णयों और सवालों का जवाब देना चाहिए।
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