Arthritis Treatment: आर्थराइटिस की चिकित्सा के लिए आवश्यक है नियमित व्यायाम और सही खान-पान। यह विकार जोड़ों और मांस पेशियों को प्रभावित करता है।
अर्थराइटिस को आमतौर पर लोग बुजुर्गों की बीमारी मान बैठते हैं, जबकि यह बीमारी युवाओं और बच्चों में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अर्थराइटिस जोड़ों और मांसपेशियों को प्रभावित करता है।
अर्थराइटिस के मरीजों के पैरों में और हड्डियों के जोड़ों में तेज़ दर्द होता है जिससे चलने-फिरने में भी तकलीफ हो सकती है। कुछ प्रकार के अर्थराइटिस में शरीर के विभिन्न अंग भी प्रभावित होते हैं, ऐसे में दर्द के साथ दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं। इस बिमारी के सामान्य लक्षण- जोड़ों में दर्द, सूजन और जोड़ों को मोड़ने में असमर्थता शामिल है।
आमतौर पर लोग गठिया और जोड़ों के दर्द से परेशान होकर दर्द निवारक दवाओं की मदद लेते हैं। लेकिन यही काफी नहीं होता। इसके लिए डॉक्टर की सलाह से खास दवाएं लेनी होती हैं। इनसे जोड़ों के दर्द से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। ऐसे मरीजों को फिजियोथैरेपी और कसरत का सहारा भी लेना पड़ता है।
इसके अलावा रूमेटॉयड अर्थराइटिस के मरीजों को चाहिए कि वे हमेशा खुद को व्यस्त और शारीरिक तौर पर सक्रिय रखें। लेकिन बीमारी का असर तेज होने पर ऐसा करना ठीक नहीं होगा। जब जोड़ों में ज्यादा दर्द, सूजन या जलन हो तो आराम करें। ऐसे में हल्के व्यायाम से जोड़ों की अकड़न कम हो सकती है। टहलना, ऐरोबिक्स और मांसपेशियों की हल्की कसरत भी मरीज को आराम देती है। (अर्थराइटिस में क्या खायें और क्या न खायें)
यही नहीं, बीमारी के बारे में गहरी जानकारी रखना भी रूमेटॉयड अर्थराइटिस के मरीजों की तकलीफ कम करने में काफी मददगार साबित हो सकता है। कई लोग साइड इफेक्ट्स के डर से दवाएं खाने से परहेज करते हैं। उन्हें समझ लेना चाहिए कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस की दवाएं पहले की तुलना में काफी एडवांस्ड हो चुकी हैं और इनके साइड इफैक्ट्स भी काफी कम हो गए हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि आजकल दवाएं सुरक्षा के लिहाज से काफी कड़े और गहरे परीक्षण के बाद ही बाजार में उतारी जाती हैं, और इसीलिए ये पहले से ज्यादा असरदार साबित होती हैं।
जहां तक खानपान का सवाल है, इसके जरिए रूमेटॉयड अर्थराइटिस के लक्षणों को समय रहते कम जरूर किया जा सकता है। कुछ लोगों में, जो सैचुरेटेड फैट्स से बचते हैं, और अनसैचुरेटेड फैट्स से भरपूर खुराक जैसे कि फिश ऑयल वगैरह लेते हैं, उनमें इस बीमारी के लक्षण कम ही नजर आते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि एक दिन में तीन ग्राम फिश बॉडी ऑयल (फिश लिवर ऑयल नहीं) का इनटेक अपना असर दिखाता है। (जानें क्यों महिलाओं में रूमेटाइड अर्थराइटिस का खतरा है अधिक)
अर्थराइटिस व्यक्ति के जोड़ों, आंतरिक अंग और त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। यह बीमारी आजीवन रहने वाली है, लेकिन अपने शरीर में कुछ बदलाव लाकर आप अर्थराइटिस के तीव्र दर्द को कम कर सकते हैं:
आर्थोनोवा अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर धनंजय गुप्ता के अनुसार, आर्थराइटिस के मरीज को अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना चाहिए। प्रतिदिन सामान्य व्यायाम करना चाहिए लेकिन दर्द के समय व्यायाम बिलकुल नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, अर्थराइटिस से बचने का सबसे आसान उपाय है, दर्द को नियंत्रित करने का हर संभव प्रयास करना। दर्द को नियंत्रित करने के लिए स्वस्थ आहार लें और नियमित रूप से व्यायाम करें। तेज़ दर्द होने पर चिकित्सक की सलाह अनुसार दवा लें।
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