बहुत से लोग नींद में बातें करते हैं। यह अजी लग सकता है लेकिन यह एक सामान्य स्लीप बिहेवियर है।इसे स्लीप टॉकिंग का जाता है। आइए आज PubMed की एक रिपोर्ट से जानते हैं क्या नींद में बात करने का संबंध स्ट्रेस से है?
नींद में बात क्यों करते हैं?
जब दिमाग गहरी नींद में भी शांत नहीं होता, तो इंसान नींद में बोल सकता है। यह तब भी होता है जब हम सपना देख रहे होते हैं।
क्या यह तनाव का संकेत है?
स्टडीज के अनुसार, ज्यादा तनाव होने पर नींद में बोलने की संभावना बढ़ जाती है। दिमाग दिन की टेंशन को नींद में भी प्रोसेस करता है।
तनाव कैसे असर डालता है?
तनाव से नींद की क्वालिटी खराब हो जाती है। इस कारण नींद बार-बार टूटती रहती है, और उसी दौरान इंसान नींद में बात करने लगता है।
क्या हर कोई नींद में बोलता है?
हर इंसान नहीं, लेकिन 50% लोग कभी न कभी सोते समय कुछ न कुछ बोलते हैं। बच्चों में यह ज्यादा आम होता है।
हमेशा तनाव ही वजह नहीं होता
स्लीप टॉकिंग के और भी कारण हो सकते हैं, जैसे बुखार, थकान, नींद की कमी या जेनेटिक फैक्टर्स। यह जरूरी नहीं कि हर बार स्ट्रेस ही कारण हो।
क्या चिंती करनी चाहिए?
अगर नींद में बोलने के साथ चिल्लाना. डर जाना या हिंसक व्यवहार हो रहा है तो यह स्लीप डिस्ऑर्डर की संकेत हो सकता है। ऐसी कंडीशन में डॉक्टर से मिलना जरूरी हो जाता है।
क्या इसे रोका जा सकता है?
स्ट्रेस कम करके, नींद का रूटीन सुधारकर और दिमाग को आराम देकर स्लीप टॉकिंग को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
तनाव से दूरी और अच्छी नींद की आदतें न सिर्फ नींद नें बोलने से रोकती हैं, बल्कि आपकी मानसिक सेहत को भी बेहतर बनाती हैं। सेहत से जुड़ी और जानकारी के लिए पढ़ते रहें onlymyhealth.com