प्राणायाम श्वसन तंत्र का एक खास व्यायाम है, जो फेफड़ों को मजबूत बनाने और रक्तसंचार बढाने में मदद करता है। फिजियोलॉजी के अनुसार जो वायु हम श्वसन क्रिया के दौरान भीतर खींचते हैं वो हमारे फेफडों में जाती है और फिर पूरे शरीर में फैल जाती है। इस तरह शरीर को जरूरी ऑक्सीजन मिलता है। अगर श्वसन कार्य नियमित और सुचारु रूप से चलता रहे तो फेफडे स्वस्थ रहते हैं। लेकिन अमूमन लोग गहरी सांस नहीं लेते जिसके चलते फेफडे का एक चौथाई हिस्सा ही काम करता है और बाकी का तीन चौथाई हिस्सा स्थिर रहता है। मधुमक्खी के छत्ते के समान फेफडे तकरीबन 75 मिलियन कोशिकाओं से बने होते है।
इनकी संरचना स्पंज के समान होती है। सामान्य श्वास जो हम सभी आमतौर पर लेते हैं उससे फेफडों के मात्र 20 मिलियन छिद्रों तक ही ऑक्सीजन पहुंचता है, जबकि 55 मिलियन छिद्र इसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस वजह से फेफडों से संबंधित कई बीमारियां मसलन ट्यूबरक्युलोसिस, रेस्पिरेटरी डिजीज (श्वसन संबंधी रोग), खांसी और ब्रॉन्काइटिस आदि पैदा हो जाती हैं। फेफडों के सही तरीके से काम न करने से रक्त शुद्धीकरण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इस कारण हृदय भी कमजोर हो जाता है और असमय मृत्यु की आशंका बढ जाती है। लंबे एवं स्वस्थ जीवन के लिए प्राणायाम बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं कि प्राणायाम किस तरह से हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है-
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फेफडे छोटी गोलाकार स्पंजी थैलियों से बने होते हैं। इन थैलियों को एल्वियोलाइ सैक्स कहते हैं। ये सांस लेने के दौरान फूल जाती हैं और ऑक्सीजन को रक्त में समाहित करने में मदद करती हैं। लेकिन प्रदूषण एल्वियोलाइ सैक्स के लचीलेपन को नष्ट कर देता है और कई बार यह कैंसर का भी कारण बन जाता है। ऑक्सीजन की कमी से शरीर की सभी कार्यप्रणालियों पर बुरा असर पडता है।
फेफडों की सफाई के लिए प्राणायाम एक बेहतरीन तकनीक है। जब आप सांस सही तरीके से लेना सीख जाएंगे तो लंबा और स्वस्थ जीवन बिताने से आपको कोई रोक नहीं पाएगा। सही तरीके और गहरा श्वास लेने से फेफडों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलता है, जो फेफडों को साफ करने में मदद करता है। हममें से तमाम लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि सांस छोडने के बाद भी वायु कुछ मात्रा में फेफडों में शेष रह जाती है। इसे वायु की अवशेष मात्रा कहते हैं। यह जहरीली वायु होती है, जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और निलंबित कण होते हैं। इस जहरीली वायु को शरीर से हटाने के लिए प्राणायाम बहुत प्रभावकारी होता है।
फेफडों से बार-बार सांस बाहर निकलने व भीतर जाने से पर्याप्त ऑक्सीजन मिलता है और जहरीली गैसें बाहर निकलती हैं। जिन्हें उच रक्तचाप व हृदय संबंधी समस्याएं हैं, उन्हें प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
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अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक का दाहिना छिद्र बंद करें। अब नाक के बाएं छिद्र से धीरे-धीरे सांस खींचें जब तक कि फेफडों में ऑक्सीजन भर न जाएं। इस क्रिया को पूरक के नाम से जानते हैं। अब नाक के बाएं छिद्र को अनामिका और मध्यमा उंगली से बंद करें और दाएं छिद्र को खोलकर धीरे-धीरे सांस छोडें। इस क्रिया को रेचक कहते हैं। सांस तब तक बाहर छोडते रहें जब तक कि फफडे से वायु पूरी तरह निकल न जाए। नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचना और दाहिने छिद्र से सांस बाहर निकालना इस क्रिया का पहला चक्र हुआ। अब दाहिने छिद्र से सांस खींचें और बाएं छिद्र से सांस छोडें। यह दूसरा चक्र हुआ।
शुरुआत में अपनी क्षमता के मुताबिक इसका रोजाना कम से कम 3 मिनट तक अभ्यास करें। धीरे-धीरे रोजाना 15-20 मिनट तक करें। संभव हो तो इसे दिन में दो बार सुबह और शाम को जरूर करें। संपूर्ण शरीर और मस्तिष्क के शुद्धीकरण के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम एक बेहतरीन व्यायाम है। यह शरीर को रोगों से बचाने में मदद करता है और उसे भीतर से मजबूत बनाता है।
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