डायबिटीज रोग कई बार शरीर के लिए घातक साबित होता है। मधुमेह का असर अधिकतर आंखों और गुर्दे पर होता है। 20 वर्ष से 70 वर्ष की आयु के बीच डायबिटीज अंधेपन का कारण भी बन सकती है। हाई ब्लड शुगर से आंखों संबंधी परेशानी का खतरा और बढ़ जाता है।
रोगियों के चश्मे का नंबर बदलना और नजर का ज्यादा कमजोर हो जाना आम लक्षण होते हैं। डायबिटीज से होने वाली गंभीर समस्याओं में से एक डायबिटिक रैटीनोपैथी भी है। यह अंधेपन का अहम कारण है। डायबिटिक रैटीनोपैथी आंख के रैटीना पर असर डालता है और इससे यह लघु रैटिनल रक्त वाहिका को कमजोर कर सकता है।
इस स्थिति में रक्त वाहिकाओं में स्राव होने लगता है या ये सूज जाती हैं। इनमें ब्रश जैसी शाखाएं भी बन सकती हैं। ऐसे में स्वस्थ रेटिना के लिए जरूरी ऑक्सीजन और पोषण की आपूर्ति नहीं हो पाती। इसके शुरुआती लक्षणों में धुंधला दिखाई देता है। रोग बढ़ने के साथ यह समस्या बढ़ती जाती है। नजर धुंधली होने के साथ ही ब्लाइंड स्पॉट, फ्लोटर, यहां तक की अचानक दृष्टि भी जा सकती है।
नेत्र चिकित्सकों के मुताबिक डायबिटीज के रोगी को जरूरी नहीं कि आंखों संबंधी परेशानी हो, लेकिन ऐसे व्यक्ति को हमेशा खतरा बना रहता है। डायबिटीज के नियंत्रित रहने पर आपको परेशानी नहीं भी होती।
डायबिटीज होने पर शरीर शुगर का सही ढंग से इस्तेमाल और भंडारण नहीं कर पाता। ऐसे में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है, इसका असर किडनी और हार्ट पर पड़ता हैं। शहरों में 45 साल की उम्र से ज्यादा के 14 फीसदी और गांवों में 5 से 7 फीसदी लोग मधुमेह से पीडि़त हैं। एक शोध के मुताबिक लोगों को डायबिटीज होने का मुख्य कारण खान-पान की गलत आदतें और तनाव भरी जिंदगी है।
शरीर में शुगर का स्तर अधिक होने पर आंखों पर असर पड़ता है। डायबिटीज के रोगियों की सामान्य व्यक्तियों की तुलना में दृष्टिहीन होने की आशंका 25 गुना तक बढ़ जाती है। मधुमेह के कारण आंखों के सामने काले धब्बे और आंखों में दर्द की समस्या हो जाती है। ऐसा ब्लड शुगर का स्तर कम ज्यादा होने और आंखों के लेंस में सूजन आने से होता है। ऐसे में चश्मे का नंबर भी बदलता रहता है। डायबिटीज के मरीज को मोतियाबिंद भी हो सकता है। मोतियाबिंद का इलाज सर्जरी से संभव है। सर्जरी से पहले शुगर का स्तर नियंत्रित करना जरूरी होता है।
डायबिटीज के कारण होने वाली दृष्टिहीनता के अधिकतर मामलों को रोका जा सकता है, इसके लिए समय पर जांच और उपचार करना जरूरी होता है। शुरूआती चरण में इसकी पहचान आंखों की जांच से ही की जा सकती है। इसलिए साल में एक बार नियमित रूप से आंखों की गहन जांच करानी चाहिए।
मधुमेह में आंख को डाईलेट कर जांच की जाती है। रेटिनोपैथी के विस्तार और आयाम को निर्धारित करने के लिए निश्चित रूप से फ्लोरिसन एंजियोग्राम और ऑप्टिकल कोहेरन्स टोमोग्राफी करना आवश्यक है। डायबिटिक रेटिनोपैथी के इलाज में सर्जरी व लेजर क्रियाएं होती हैं। डायबिटीज से पीड़ित लोगों के एक अध्ययन में देखा गया कि रेटिनोपैथी के प्रारंभिक दौर में लेजर थैरेपी से अंधेपन को 50 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
मधुमेह रोगियों की एक बार दृष्टि खो जाने पर उपचार द्वारा इसे लौटाना असंभव होता है। डायबिटिक रैटीनोपैथी के लिए दुनिया में लेजर तकनीक को ही स्थाई इलाज माना जाता है। मधुमेह रोगियों को अपनी आंखों की नियमित जांच करानी चाहिए। मधुमेह में सफेद मोतियाबिंद की समस्या से धुंधला दिखाई देने लगता है। कई बार तो यह इतनी घातक होती है कि रोगी अंधेपन का शिकार हो जाता है।
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